भारत की सबसे छोटी चिप, सबसे बड़ा बदलाव : युवा ही बना सकते हैं तकनीकी भविष्य
भारत की सबसे छोटी चिप अब सिर्फ तकनीकी उपकरणों का हिस्सा नहीं, बल्कि युवाओं के नए विचारों और नवाचार के जरिए दुनिया बदलने का अवसर बन गई है। यह समय है खुद को तैयार करने का, स्टार्टअप्स और डिज़ाइन में कदम रखने का, ताकि आप न केवल देश की तकनीकी क्रांति का हिस्सा बनें, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की पहचान भी मजबूत करें। पढ़ें और जानें कैसे आप इस बदलाव का हिस्सा बन सकते हैं।
राजाराम गौत्तम (प्रधान सम्पादक)
9/5/2025
नई दिल्ली से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश भारत के तकनीकी भविष्य की दिशा तय करने वाला साबित हो सकता है। सेमीकॉन इंडिया 2025 के उद्घाटन सत्र में उन्होंने न केवल घरेलू और विदेशी निवेशकों को नीतिगत स्थिरता का भरोसा दिलाया बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि भारत अब केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग का निर्णायक खिलाड़ी बनने की तैयारी में है।
आज जब दुनिया तकनीकी निर्भरता और आपूर्ति श्रृंखला की चुनौतियों से जूझ रही है, तब भारत का यह कदम समय की मांग भी है और अवसर भी। प्रधानमंत्री का यह कहना कि भारत की सबसे छोटी चिप, दुनिया के सबसे बड़े बदलाव का कारक बनेगी—सिर्फ एक नारा नहीं बल्कि आत्मनिर्भर भारत के रोडमैप का ठोस संकेत है।
वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती भूमिका
आज सेमीकंडक्टर बाजार 60 हजार करोड़ डॉलर का है और अगले कुछ वर्षों में यह एक लाख करोड़ डॉलर को पार कर जायेगा। इस विशाल अवसर में भारत का हिस्सा तय है। नोएडा और बेंगलुरु जैसे शहर अब केवल आईटी सेवाओं के लिए ही नहीं, बल्कि अत्याधुनिक चिप डिज़ाइन और निर्माण के लिए पहचाने जा रहे हैं। यह गर्व की बात है कि दुनिया की 20% प्रतिभा जो सेमीकंडक्टर डिजाइन तैयार करती है, वह भारतीय है।
निवेश और भरोसे की नई कहानी
भारत की धरती पर सेमीकंडक्टर की 10 परियोजनाओं में डेढ़ लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश होना इस बात का प्रमाण है कि वैश्विक उद्योग जगत भारत को केवल बाजार नहीं, बल्कि भरोसेमंद साझेदार मान रहा है। माइक्रॉन और टाटा जैसे बड़े समूहों का टेस्ट चिप निर्माण शुरू करना इसी भरोसे का प्रतिफल है।
डिजाइंड इन इंडिया से मेड इन इंडिया तक
"डिजाइंड इन इंडिया, मेड इन इंडिया, ट्रस्टेड बाय द वर्ल्ड"—यह मंत्र केवल स्लोगन नहीं, बल्कि भारत की तकनीकी कूटनीति का सार है। सरकार की चिप्स-टू-स्टार्टअप और डिजाइन आधारित प्रोत्साहन योजना जैसे कार्यक्रम स्टार्टअप्स और नवाचारियों को मजबूती देंगे। यही युवा प्रतिभा आने वाले समय में भारत को बैकएंड से बाहर निकालकर पूर्ण सेमीकंडक्टर राष्ट्र बनाएगी।
चुनौतियाँ और अवसर
हालाँकि यह सफर आसान नहीं है। वैश्विक प्रतिस्पर्धा, भारी निवेश की जरूरत और तकनीकी आत्मनिर्भरता हासिल करना बड़ी चुनौतियाँ हैं। लेकिन अवसर भी उतने ही विशाल हैं। यदि भारत शिक्षा, अनुसंधान और औद्योगिक सहयोग को मजबूती देता रहा तो सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में वही स्थान हासिल करेगा जो आईटी और सॉफ्टवेयर में पहले ही प्राप्त कर चुका है।

